" आध्यात्मप्रेरित सेवा भाव से बनाएं अपने कार्य को कर्मयोग"
प्रबोधन:विवेकानन्द केन्द्र बीओआरएल चिकित्सालय में माननीय श्री हुनमन्त राव जी का प्रबोधन सत्र आयोजित
बीना। पूरे देश में साढे चार साल घूमने के बाद उन्होने कन्याकुमारी पहुंचकर श्रीपाद परै शिला पर ध्यान किया और भारत के आर्त विपन्न लोगों की स्थिति पर ध्यान किया। एक ओर धनसम्पदा से सम्पन्न लोग देखे तो दूसरी ओर अत्यंत गरीब लोग देखे तो वे काफी दुखी होकर ध्यानस्थ हो गए और भारत के भूत, वर्तमान और भविष्य पर ध्यान किया। वहीं जब वे अमेरिका पहुंचे और काफी विख्यात हुए तो 12 जनवरी को एक बडे व्यक्ति के घर रूके जहां काफी सुख- सुविधाएं थी फिर भी स्वामी जी जमीन पर दुखी होकर बैठे रहे रोते रहे। उनका हृदय दुखी था कि मेरे देशवासियों के पास दो वक्त का भोजन नहीं ओढने को चादर नही ंतो मैं ऐसे भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं तो मैं कैसे ऐसे सुख-सुविधाओं का उपभोग कर सकता हूं, यह स्वामी विवेकानन्द ने कहा। वे बोले कि मैं यहां से वापिस जाकर अपने देश की आत्मा को जाग्रत करने का प्रयास करूंगा।
यह बात विवेकानन्द केन्द्र के अखिल भारतीय कोषाध्यक्ष माननीय श्री हनुमन्त राव जी ने मध्य प्रांत प्रवास के दौरान विवेकानन्द केन्द्र बीओआरएल चिकित्सालय,बीना में एक प्रबोधन सत्र के दौरान कर्मयोग विषय पर बोलते हुए कही। माननीय श्री हनुमन्त राव जी ने कर्मयोग विषय पर आगे बोलते हुए उन्होने कहा कि जब वे भारत लौटे तो रामनाथपुरम के महाराजा ने बीस हजार से अधिक लोग जो स्वामी जी के स्वागत के लिए आए थे उनकी उपस्थिति में रथ के घोडे खोलकर स्वयं अपने कांधों से रथ खींचा। यह सेवा और त्याग का उच्चतम आदर्श यहां हमें देखने को मिलता है। जब हम समाज की पीडा से आहत होकर सेवा कार्य करते हैं, तो यह सेवा कार्य ही कर्मयोग बन जाता है। जब हम अपने देशवासियों से प्रेम करते है, ऐसा प्रेम जो त्याग से प्रेरित हो वहां कर्मयोग का मार्ग प्रशस्त होता है। मां अपनी संतान को प्रेम करती है, वह उनके लिए हर प्रकार का त्याग करने तत्पर रहती है। वह स्वयं के सुख सुविधाओं का त्याग कर देती है, अतः मां का प्रेम निश्चल प्रेम ही कर्मयोग है, यही प्रेमयोग है और यही भक्तियोग है।
हमें भी अपने कार्य के दौरान दूसरों से यह प्रेम करना चाहिए। अपने कर्म और दायित्व को प्रेम करें तो यह कार्य ही आगे चलकर कर्मयोग बन जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने दायित्व को प्रेम करते हुए अपनी सुख सुविधाओं का त्याग कर पूरी निष्ठा से कार्य करता है, तो वह कर्म ही पूजा बन जाता है। यही कर्मयोग कहलाता है। मुझे ईश्वर ने सेवा के लिए चुना है, मैं सेवा कार्य का एक उपकरण हूं, मेरे हाथ से साक्षात एक ईश्वर की पूजा हो रही है, यह सेवा का उच्चतम आदर्श है। हम यह मानकर अपना सेवा कार्य करें कि मैं मेरे सामने उपस्थित कार्य को एक कर्मयोग के पुष्प रूप में अर्पित कर अपना योगदान दे रहा हूं, यह सोेचें।
हम अपने अन्दर के देवत्व को आध्यात्म प्रेरित सेवा के माध्यम से ही प्रकट कर सकते है, यह बात माननीय एकनाथ जी रानाडे कहा करते थे। जो इस पथ पर बढकर कार्य करता है, उसके भीतर प्रेम और आत्मीयता का झरना बहता है, ऐसे व्यक्ति के चेहरे पर हर समय प्रसन्नता रहेगी। व्यक्ति की ड्यूटी और दायित्व भले ही छोटे बडे हो सकते है, किन्तु उसका व्यवहार आत्मीयता से रचा-बचा रहेगा। ऐसे वातावरण में एक दूसरे के प्रति स्वार्थ, ईष्र्या नहीं रहता है। वहां प्रेम और आध्यात्म रहेगा। वहां ‘हैंण्डल विथ केयर-हैण्डल विथ लव‘ यह भाव रहेगा। जहां ऐसा वातावरण हो जिसमें आत्मीयता हो, प्रेम हो वहां समान व्यवहार एक समान होगा सबके व्यवहार में प्रेम होगा। यह प्रेम मातृवत प्रेम होगा अर्थात हम अपनी सेवा के बदले कुछ लेने की अपेक्षा नहीं करेंगे। जब ऐसा वातावरण हम बना पाए तो निश्चित ही हम काम में आने वाली हर बाधा को मिलकर पार कर लेंगे। यदि ऐसा भाव रहा तो सेवा के क्षेत्र में आ रही हर बाधा को हम समझ सकते हैं। जिस प्रकार चींटियां एक पंक्तिबद्ध होकर चलती है, किन्तु जब कुछ चींटियां बाहर हो जाएं तो कुछ चींटियां बाहर होने वाली चींटियों को भीतर धकेलती है, ऐसे ही हमारे टीम में ऐेसे आध्यामप्रेरित भाव से कार्य करने वाले कार्यकर्ता हमें हमारे ध्येय से कर्तव्य से दूर होने पर पुनः उसी ओर प्रेरित करते हैं। जिस प्रकार चींटियां कभी पंक्तियों में आने वाली बाधाओं से वापिस नहीं लौटती हैं, हम भी बाधाओं से पीछे ना हटे। हर कठिनाई पर हम आध्यात्म प्रेरित सेवा भाव से विजय पाएं यही भाव रहे।
हम सभी विवेकानन्द केन्द्र कार्यकर्ता भी इसी भाव से आगे बढें और अपने कार्य को कर्मयोग के भाव से करें। अन्त में उन्होने सभी से आव्हान किया की वे एक बार कन्याकुमारी अवश्य आए जहां विवेकानन्द शिला स्मारक और मां कन्याकुमारी देवी के दर्शन करें माननीय एकनाथ जी की तपोभूमि पर एक बार अवश्य आएं।
कार्यक्रम में चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डाॅ. सुब्रत अधिकारी ने कहा कि हम सब एक परिवार के रूप में मिलकर कार्य करंे और यहां आने वाले मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं सेवाभाव से प्रदान कराएं, तो हम निश्चित ही अपने संगठन के उदेश्य को पूर्ण करने में अपना योगदान दे पाएंगे। कार्यक्रम में चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डाॅ. सुब्रत अधिकारी, मध्य प्रांत संगठक सुश्री रचना जानी दीदी, चिकित्सालय के सभी चिकित्सक व अन्य सदस्य उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में चिकित्सालय के शल्य चिकित्सक डाॅ. दीपक प्रधान ने माननीय हनुमन्त राव जी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन गिरीश कुमार पाल ने किया।
विवेकानन्द केन्द्र बीओआरएल चिकित्सालय
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